यूं तो खुशियाँ उभर रही थीं हसरत में,
मगर गमों के अक्स बन गए उल्फत में।
राह चाह की, आह तलक ही जाती है,
अक्सर ऐसा क्यूँ होता है चाहत में।
अहसासों में कब तक दर्द छुपे रहते,
नज़र आ गए सभी ग़ज़ल की रंगत में।
मन्नत है उनकी आँखों में बस जाएँ,
इससे बढ़कर क्या अच्छा है जन्नत में।
दिल जीते जाते हैं प्यार मुहब्बत से,
इतनी ताकत होती है क्या दौलत में ?
प्यार के लिए पहले कितनी फुर्सत थी,
‘प्रवीण’ इसकी बात करेंगें फुर्सत में।