Skip to content

अहिंसा

2.3 2 votes
Article Rating

(स्वामी रामकृष्ण परमहंस द्वारा अपने शिष्यों को सुनाई गई एक कथा पर आधारित।)

एक समय की बात है।एक गाँव के चरवाहे प्रतिदिन अपने पशुओं को जंगल में चराने के लिए ले जाते थे।उनके मार्ग में एक विशाल वृक्ष पड़ता था।वृक्ष के नीचे बिल में एक विषैला नाग रहता था।यदि कोई व्यक्ति उस वृक्ष के पास जाता तो नाग फुँफकारता हुआ बिल से बाहर निकलता और व्यक्ति को डँस लेता था।इस प्रकार कई व्यक्ति प्राण गँवा बैठे थे।गाँव के लोग उस नाग से बहुत भयभीत रहते थे और कभी उस वृक्ष के निकट नहीं जाते थे।चरवाहे भी बहुत सावधानी से वहाँ से निकलते,विशेष रूप से शाम के समय उन्हें अधिक डर रहता था कि कहीं नाग बिल से बाहर न बैठा हो।वे जल्दी-जल्दी,जैसे-तैसे दौड़ते हुए उस वृक्ष के पास से गुज़र जाते थे।
एक दिन एक भिक्षु उस गाँव में आये।वे रात को गाँव के मंदिर में ठहरे।प्रातः जब चरवाहे अपने पशुओं को जंगल की ओर ले जा रहे थे तब भिक्षु भी उनके साथ चल पड़े।चरवाहों ने उन्हें प्रणाम किया।फिर चरवाहे उन्हें अपने गाँव के बारे में बताने लगे।चलते-चलते वे उस जगह पहुँच गए जहाँ वह विशाल वृक्ष था।भिक्षु ने उस सुन्दर वृक्ष को देखकर कहा,”कितना विशाल और सुंदर वृक्ष है।मैं थोड़ी देर इस वृक्ष के नीचे बैठूँगा।” चरवाहे एक साथ चिल्ला उठे,”नहीं महाराज,आप वहाँ न जाइये।वहाँ एक काला नाग रहता है।वह लोगों को डँस लेता है और लोग प्राण गँवा बैठते हैं।”
“नाग मुझे नहीं काटेगा,तुम चिंता न करो।”
भिक्षु ने शांत स्वर से कहा,और उस वृक्ष की ओर चल पड़े।चरवाहे एक दूसरे का मुँह देखने लगे,और जल्दी-जल्दी अपने पशुओं को हाँकते हुए जंगल की ओर निकल पड़े।
भिक्षु उस वृक्ष के समीप पहुँचे ही थे कि काला नाग फुँफकारता हुआ बिल से बाहर आया।भिक्षु उसे देखकर तनिक भी नहीं घबराए।उन्होंने किसी मंत्र का उच्चारण किया।उस ध्वनि को सुनते ही नाग शांत हो गया।उसने अपना फन झुका लिया और सिमटकर एक ओर बैठा गया।भिक्षु ने कहा,”मैं इस वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान लगाऊँगा।देखना,मेरे ध्यान में किसी प्रकार की बाधा न पड़े।” ऐसा कहकर भिक्षु ने अपनी संगीतमयी वाणी में कुछ मंत्र उच्चारित किए,फिर वे मौन हो गए और ध्यान में बैठ गए।पूरा दिन भिक्षु ध्यान में बैठे रहे और काला नाग उनके समीप बैठा उनकी रखवाली करता रहा।जब भिक्षु का ध्यान टूटा तो सबसे पहले उनकी दृष्टि उस नाग पर पड़ी।उन्होंने कोमल स्वर में पूछा,”नागराज,तुम अभी तक यहीं हो?”
“जी महाराज।” नाग ने उत्तर दिया।
भिक्षु बोले,”सुना है तुम्हारा दंश विषैला है।तुम्हारे दंश से लोग मर जाते हैं।”
“जी महाराज,ऐसा ही है।”
“क्या तुम्हें नहीं लगता तुम्हें क्रोध नहीं करना चाहिए?”
“मैं अपने क्रोध पर नियंत्रण करना चाहता हूँ,लेकिन कर नहीं पाता।”
“यदि तुम मन से ऐसा चाहते हो तो अवश्य कर सकोगे।मैं तुम्हें एक मंत्र देता हूँ।तुम इस मंत्र का जाप करते रहोगे तो तुम्हारा मन शांत रहेगा।तुम सबको प्रेम की दृष्टि से देखोगे और कभी किसी का बुरा नहीं चाहोगे।” ऐसा कहकर भिक्षु ने नागराज को एक अद्भुत मंत्र दिया।नाग अपने बिल में जाकर उस मंत्र का जाप करने लगा।तब तक शाम हो गई थी।चरवाहे अपने पशुओं को लेकर जंगल से लौटने लगे थे।इस समय वे यह जानने के लिए उत्सुक थे कि भिक्षु के साथ क्या घटना घटी।जैसे ही वे वृक्ष के पास पहुँचे भिक्षु को सकुशल देखकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ और साथ ही बहुत प्रसन्नता भी ही।वे दौड़कर भिक्षु के पास पहुँचे,तब भिक्षु ने मुस्कुराते हुए कहा,”नाग ने मुझे नहीं डँसा।अब वह किसी को नहीं डँसेगा।तुमलोग निर्भय होकर इस वृक्ष के पास आ-जा सकते हो।”चरवाहों को पहले विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा भी कभी हो सकता है,फिर वे प्रसन्नतापूर्वक गाँव की ओर चल पड़े।
धीरे-धीरे गाँव वालों हर उन चरवाहों के मन से नाग का भय निकल गया।अब चरवाहे उस मार्ग से गुज़रते तो प्रायः काला नाग वहाँ दिखाई पड़ जाता।कभी-कभी तो वे नाग पर पत्थर फेंकते तब भी नाग क्रोध नहीं करता था।एक दिन तो चरवाहे लड़कों ने नाग पर बहुत पत्थर मारे।वह लहूलुहान हो गया।उसका शरीर पीड़ा से हिल जाता लेकिन वह लड़कों को कुछ न कहता।फिर तो एक शैतान लड़के ने उस नाग के पास जाकर उसकी पूँछ पकड़कर उसे उठा ही लिया और हवा में गोल-गोल घुमाकर ऐसा पटका कि बेचारा नाग अधमरा-सा हो गया।लड़के चिल्लाए,”मर गया।काला नाग मर गया।” और हँसते हुए वहाँ से चले गए।
लड़कों की इस निर्दयता से नाग को बहुत कष्ट हुआ लेकिन उसने क्रोध नहीं किया।रात को धीरे-धीरे रेंगते हुए नाग अपने बिल में चला गया और कई दिन तक बिना कुछ खाये वहीं पड़ा रहा।धीरे-धीरे उसके घाव तो भर गए लेकिन वह बहुत कमज़ोर हो गया।अब वह केवल रात के समय बिल से बाहर निकलता, खाने के लिए कुछ ढूँढता, जो कुछ मिलता वही खाकर वापस बिल में लौट जाता।काफ़ी समय बीत जाने बाद एक बार पुनः वही भिक्षु उस गाँव में आए।चरवाहों ने उन्हें देखा तो दौड़कर उनके पास पहुँचे और उन्हें बताया-काला नाग मर गया।अब हमें नाग से कोई भय नहीं है।
“क्या?नाग मर गया?”भिक्षु आश्चर्य से पूछा और वे तेज़ी से उस वृक्ष की ओर गए।नाग के बिल के पास जाकर भिक्षु ने पुकारा,”नागराज!नागराज,कहाँ हो?बाहर आओ।” नाग बिल से बाहर निकला।उसने भिक्षु को प्रणाम किया।भिक्षु को यह देखकर बहुत दुख हुआ कि नाग बहुत दुबला हो गया था।उन्होंने पूछा,”कैसे हो बच्चे?”
“अच्छा हूँ,महाराज।”
“क्या बात है,तुम बहुत कमज़ोर दिखाई दे रहे हो?गाँव के लोग तो समझते हैं कि तुम मर गए।क्या बात है,मुझे बताओ।”
“शायद मर ही जाता।आपकी कृपा से जीवित हूँ।”ऐसा कहकर नागराज ने उस दिन की घटना सुनाई जब लड़कों ने उसे मारा था।सुनकर भिक्षु को बहुत दुख हुआ।उन्होंने कहा,”लड़कों ने तुम्हें इतना मारा फिर भी तुम चुपचाप सहते रहे?विरोध क्यों नहीं किया?”
“मैंने आपसे वायदा किया था कि मैं किसी पर क्रोध नहीं करूँगा,किसी को नहीं काटूँगा।”
“हाँ, मैंने तुम्हें अहिंसा का पाठ पढ़ाया,लेकिन अपनी रक्षा के लिए तुम फुँफकार तो सकते हो।”
“आपका कहना उचित है।आगे से ऐसा ही करूँगा।”नाग ने कहा।भिक्षु ने उसे आशीर्वाद दिया और वहाँ से चले गए।

2.3 2 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
सभी टिप्पणियाँ देखें
Abhishek Kumar

बढ़िया कहानी।