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दिल बेचारा

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#DilBechara #ExclusiveReview
#SaharReviewsMovie
#DisneyHotstar (Spoiler Alert)

कितना बड़ा इत्तेफाक है न कि आख़िरी फिल्म किसी हीरो की हो और उस फिल्म में भी उसका अंजाम आख़िरी ही हो।

#कहानी Kizie बासु (संजना संघी) नामक ऐसी शांत, कंफ्यूज्ड और निराश लड़की की है जिसे lung कैंसर है। 24 घंटे उसे ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ रहना पड़ता है। किज़ी अपनी कहानी रोज़ ब्लॉग करती है। जमदेशपुर (टाटा) में रहती है। एक दिन कॉलेज में इमेनुअल राजकुमार जूनियर (सुशांत) उससे टकराता है जो किज़ी के उलट बहुत ज़्यादा बदतमीज़, ख़ुशमिजाज़ और ज़िन्दगी जीने वालों में से है। उसको भी एक वक़्त कैंसर था फिर उसकी टांग काटनी पड़ी। उसका दोस्त जेपी (साहिल वैद) भी कैंसर पेशेंट है, उसकी आँखों में कैंसर है और वो साउथ इंडिया स्टाइल एक फिल्म बनाना चाहता है। उसकी आँखे निकाल ली जाती हैं। इन सबके बीच किज़ी का एक छोटा-सा ड्रीम है, अभिमन्यु वीर (सैफ अली) नामक एक संगीतकार का गाना ‘मैं तुम्हारा’ उसे बहुत पसंद है पर वो जानती नहीं कि ये गाना अधूरा क्यों है। लेकिन अभिमन्यु वीर गायब हो चुके हैं।

किज़ी और राजकुमार बहुत क़रीब आ जाते हैं, दांत काटी मुहब्बत हो जाती है और राजकुमार अभिमन्यु का पता लगा लेता है। अब अभिमन्यु पैरिस में है, किज़ी की हालत देख डॉक्टर और घरवाले पैरिस जाने की परमिशन देते नहीं हैं।

#डायरेक्शन में मुकेश छाबड़ा का ये पहला प्रयास है और ज़बरदस्त है। उनका डायरेक्शन ही है जो एक लाइन की लिखी कहानी को देखने लायक बना देता है। मुकेश ने फिल्म के अन्दर बनती फिल्म, जिसका कोई सिर पैर नहीं था; अच्छी डायरेक्ट की है पर अफ़सोस फर्स्ट kiss की importance इतनी ग्लोरिफाई करके उसे शूट ही  नहीं किया है।

#स्क्रीनप्ले the fault in our stars नामक नॉवेल से इंस्पायर्ड है जो जॉन ग्रीन ने लिखी थी। शशांक खैतान और सुप्रोतिम सेनगुप्ता ने इसे स्क्रीनप्ले का रूप दिया है। यहाँ आधी फिल्म के बाद कुछ भी नहीं निकलता है। कॉलेज करण जौहर वाला है, कहानी का वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है। मैंने किताब नहीं पढ़ी और इस फिल्म को देखने के बाद पढ़ने का मन भी नहीं है। जगह-जगह Emotional सीन्स डालकर, बल्कि एडिटिंग में ख़ास इमोशनल सीन्स पर फोकस रखवाकर लेखक और निर्देशक दोनों सुशांत की मौत को कैश करते लगे हैं। यकीन जानिए फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है जो अचंभित करे, unxpected शब्द कोसों दूर है। हो सकता था, पर डील नहीं हुआ है।

किसी लड़की की माँ के सामने ख़ुद को बॉयफ्रेंड कहना बेतुका सीन है।
ब्रेकअप होने पर लड़की के घर पर अंडे फेंकना कहीं से भी फनी नहीं है।

#डायलॉग अच्छे लिखे हैं,

“जितने अच्छे डॉक्टर उतने मुश्किल शब्द, पापा बस सिर हिला रहे थे, उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था”

“हीरो बनने के लिए ज़रूरी नहीं कि आप फेमस हों, आम ज़िन्दगी में भी हीरो होते हैं”   

ऐसे ढेरों अच्छे डायलॉग हैं, आपको जो पसंद आया हो आप मुझे बता सकते हैं।

#एक्टिंग सुशांत और संजना दोनों ने बहुत बढ़िया की है। ज़िंदादिल लड़के के रोल में, जो लाउड भी न हो; सुशांत से बेहतर कोई नहीं हो सकता था। संजना रोई बहुत नेचुरल हैं, हंसी बहुत अच्छा है, बॉडीलैंग्वेज एक्सप्रेशन से मैच की है।

साहिल वैद का छोटा सा रोल है पर दमदार है।

माँ बनी स्वस्तिका मुख़र्जी ने कमाल कर दिया है, उनका रोल, उनकी सुशांत के साथ केमेस्ट्री और उजागर होनी थी पर शायद एडिट हो गयी हो।
सास्वत चटर्जी की एक्टिंग भी दमदार है। पुराने चावल की ख़ुशबू दूर तक जायेगी।

सैफ अली खान का एक सीन है पर उनकी लुक ज़बरदस्त है और वो पॉवरफुल सीन है। इम्पैक्ट छोड़ता है।

डॉक्टर बने सुनीत टंडन भी अच्छे लगे हैं।

#म्यूजिक बहुत ज़बरदस्त है, रहमान वापस अपनी फॉर्म में आ गये हैं लेकिन ‘लतीफा’ गाने के अलावा लिरिक्स औसत हैं, टाइटल सोंग में तो ज़बरदस्ती घुसाए लगते हैं। अमिताभ भट्टाचार्य के लिखे गाने वो इम्पैक्ट नहीं छो
ड़ते जिनके लिए अमिताभ मशहूर हैं पर बैकग्राउंड और फॉरग्राउंड म्यूजिक बहुत बढ़िया है।

#सिनेमेटोग्राफी सत्यजीत पांडे ने की है और बहुत ज़बरदस्त है। फिल्म अलग ही कलर टेम्प्रेचर पर धुली-धुली सी लगती है। एक-एक सीन, क्लोज़अप तक देखने में मज़ा आ जाता है।

#एडिटिंग में मैंने पहले ही बताया, फिल्म को ज़्यादा से ज़्यादा मार्मिक करने की कोशिश की गयी है। रोमांस और इमोशनल सीन्स को बढ़ाकर स्टोरी एक्सप्लेन और करैक्टर केमेस्ट्री को पीछे किया है। फिल्म कुल 100 मिनट की है।

#कुलमिलाकर ये फिल्म आपको प्रियंका और ज़ायरा वसीम की आख़िरी फिल्म ‘स्काई इज़ पिंक’ ज़रूर याद दिलायेगी। बस फ़र्क़ ये है स्काई इज़ पिंक आपको ज़िन्दगी के प्रति मोटिवेट करने वाली थी पर दिल बेचारा आपको आत्महत्या करने पर भी मजबूर कर सकती है। फिल्म सकारात्मकता को फ़ैलाने की कोशिश में डिप्रेशन बांटने वाली है। कोई बड़ी बात नहीं लोग देखते-देखते रोने लगे, रोते-रोते मरने की सोचने लगें। फिर भी टेकनिकल पॉइंट्स पर फिल्म एक बार देखनी बनती है, लेकिन आप कमज़ोर दिल के प्राणी हैं तो छोड़ भी सकते हैं। फिल्म साधारण से ज़रा ऊपर है बस सुशांत की आकस्मिक मौत इसे स्पेशल बनाती है।

#रेटिंग 7/10*

आपके सुझाव, सवाल आमंत्रित है।

#सहर

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