हाजत में हरिणापि हरेणापि ब्रह्मणा त्रिदशैरपि | ललाटलिखिता रेखा न शक्या परिमार्जयितुम्|| (व्यास:) योंहीं सारी रात बीती और सबेरे जब मुझे एक कांस्टेबिल ने खूब चिल्ला-चिल्ला कर जगाया, तब मेरी नींद खुली। मैं आँखें मल और भगवान का नाम लेकर उठ बैठी और बाहर खड़े हुए कांस्टेबिल से मैंने पूछा,--“क्यों भाई, कै बजा होगा?” वह बिचारा बड़ा भला आदमी था। सो, उसने मेरी ओर करुणा भरी दृष्टि से देखकर यों कहा,--“अब नौ बजनेवाले हैं।” यह सुनकर मैं बहुत ही चकित हुई और बोली, “ओह! इतनी देर तक मैं सोती रही!!!” इस पर उस कांस्टेबिल ने कहा,--“नहीं, दुलारी! तुम रात को
उपन्यास
हिंदी का पहला मौलिक उपन्यास गौरी दत्त का देवरानी जेठानी की कहानी (1870) है या श्रद्धाराम फिल्लौरी का भाग्यवती (1879) या श्रीनिवास दास का परीक्षा गुरु (1882), यह एक उलझा हुआ सवाल है। परीक्षा गुरु के कच्चेपन के बावजूद उसमें औपन्यासिक संरचना एवं कथा विन्यास का एक विश्वसनीय ढांचा है। इसलिए उसे हिन्दी उपन्यास लेखन का पहला रचनात्मक प्रयास माना जा सकता है।