हितोपदेश माता मित्रं पिता चेति स्वभावात् त्रितयं हितम्। कार्यकारणतश्चान्ये भवन्ति हितबुद्धयः॥ (हितोपदेशे) यों कहकर भाईजी फिर मुझसे बोले,–“ दुलारी, अब तुम अपना बयान मेरे आगे कह जाओ; पर इतना तुम ध्यान रखना कि इस समय जो कुछ तुम कहो, उसे खूब अच्छी तरह सोच-समझ कर कहना।” यों कहकर भाईजी ने अपने जेब में से एक मोटी सी पोथी निकाली, जो सादे कागजों की थी। बस, उस पुस्तक को एक हाथ में ले और दूसरे हाथ से स्याही से भरी हुई कलम पकड़कर उन्होंने मेरी ओर देखा। मैंने धीरे से कहा,– “आपने जो मुझे बार-बार यह चेतावनी दी कि, ‘मैं जो कुछ इस समय आपके आगे बयान करूँ, वह सच-सच ही कहूँ, झूठ न कहूँ’; क्यों, आपके इस कहने का यही मतलब है न?” भाईजी ने कहा,– “नहीं, मेरा मतलब यह नहीं है; अर्थात् मैं तुम्हें झूठी नहीं समझता, और न यही खयाल करता हूँ कि […]
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सज्जनता “किमत्र-चित्रं यत्सन्तः परानुग्रहतत्पराः। न हि स्वदेहशैत्याय जायन्ते चन्दनद्रुमाः॥” (कालिदासः) पर, उस बात पर मैं अधिक ध्यान न देने पाई, क्योंकि भाईजी ने अबकी बार जरा बिगड़कर यों कहा, —“बस, बहुत हुआ, एक लड़की को अपने बड़ों के आगे इतना हठ और इतनी ढिठाई कभी न करनी चाहिए, इसलिए अब मैं तुम्हें यह आज्ञा देता हूँ कि तुम इन दोनों कंबलों में से एक को बिछा लो और दूसरे को ओढ़ कर सहूलियत से अपनी कोठरी में बैठ जाओ।” यह सुनकर फिर मैंने कुछ भी न कहा और चुपचाप एक कंबल को धरती में डालकर मैं उस पर बैठ गई और दूसरे को मजे में मैंने ओढ़ लिया। सचमुच, उस समय मुझे बड़ा जाड़ा लग रहा था, क्योंकि सबेरे मैं ठंढे पानी से खूब नहाई थी! इसलिये भाईजी की इस डाँट-फटकार को मैंने मन ही मन अनेक धन्यवाद दिए और सर्दी से काँपते हुए कलेजे को धीरे-धीरे गरम […]
“भाई ये बिजली के गलत बिल कौन साहब ठीक करते हैं ?” “क्या काम है ?” “मैं एक किराए के कमरे में रहता हूँ ।कमरे में बिजली के नाम पर एक पंखा और एक बल्ब है| इन दो चीजों का बिल इस महीने ‘ दस हज़ार ‘ आया ! इसी सिलसिले में साहब से मिलना है।” चपरासी ने उसे सुधीर साहब के पास भेजा। ” साहब मेरा बिजली का बिल बहुत ज्यादा आया है,इसे कृपया ठीक कर दीजिए।” साहब ने सिर से पांव तक दीनू को देखा ! “जितनी जलाते हो उतना ही आएगा न !” ” साहब ,एक पंखे,बल्ब का दस हज़ार ?” ” हाँ ,तो खाना बिजली के हीटर पर पकाते होंगे ? तुम लोग कटिया डाल बिजली की चोरी करते हो| इस बार कटिया सही से डली न होगी, तो ज्यादा बिल आ गया।” ” साहब, मैं कोई कटिया न डालता। साथ ही खाना भी ढाबे पर […]
गुड़िया बहुत छोटी थी। सिर्फ़ छह बरस की। उसकी माँ सुनीता दूसरों के घरों में झाड़ू पोछा करती थी। वो अपनी माँ के साथ हो लिया करती थी। उसे टीवी देखने का बहुत शौक था। जिस घर में भी उसकी माँ काम करती, उतनी देर वो वहां बैठकर टीवी देख लेती थी। उतने में मगर उसका जी कहाँ भरने वाला था? माँ से पूछती – “अम्मा, हमारे घर में टीवी क्यों नही हैं?” उसकी माँ उसके प्रश्न से बचते हुये उत्तर देती -” लल्ली, टीवी बड़े लोगों का शौक है। बंसी वाले ने चाहा तो दिलवा देंगें एक ठो टीवी तुमको किसी दिन।” गुड़िया मन मसोस के रह जाती। कितने अच्छे प्रोग्राम आते हैं टीवी पर। कार्टून, फिल्में, गाने। माँ के काम के चक्कर में सब आधे अधूरे रह जाते है। उसे पता ही नही चल पाया कि आज प्रेरणा की शादी अनुराग से हो पायी कि नही। छोटा भीम […]
(सच्ची घटना से आंशिक प्रेरित) हर्षिता जंगले से बाहर बारिश होती देख रही थी। उसने अपना हाथ बाहर निकाला, बहुत चेष्टा करने के बावजूद भी वो होती बारिश पर ऊँगली न छुआ सकी। उसकी साथ वाली ने रुखाई से पूछा “क्या हुआ? क्या कर रही है?” हर्षिता ने कोई जवाब नहीं दिया। बस सोचने लगी। _________________________________________________________________ वो कभी अपनी ज़िन्दगी में ज़्यादा बोल नहीं पाती थी। पिताजी अक्सर कहते थे कि ‘अपनी मनमर्जी करनी है तो जा के अपने पति के घर करना। पति का घर ही तुम्हारा घर होगा’। हर्षिता कोई जवाब न दे पाई। बस इंतेज़ार करती रहती थी कि कब जायेगी, कब दूसरा कहलाने वाला घर पहला घर बनेगा। कब वो दिन आयेगा जब अपने ही घर से पराई हो जायेगी। इस घर में, उसे कोई ख़ास प्यार मिला नहीं था। हाँ, उसकी ज़रूरतें बिना टोके ही पूरी कर दी जाती थीं। ‘जो भी चाहिए, माँ से […]
लोक नृत्य, लोकगीत आदिवासी जन-जीवन को उल्लसित करने का एक सर्वोत्तम माध्यम है। नृत्य, संगीत आदिवासी जीवन के रग-रग में, पल-पल में रचा बसा है। हर प्रांत के जन-जातीय जीवन में कमोबेश यही स्थिति पाई जाती है। छोटा नागपुर की कुडुख (उरांव) जनजाति भी इससे अछूती नहीं है। यहां के लोकगीतों में, विभिन्न कार्यक्रमों में गाए जाने वालो गीतों में, आदिवासी लोगों की पीड़ा, वेदना, कष्ट, यंत्रणा एवं सामाजिक स्थिति का दारूण चित्रण मिलता है, एवं उनके कष्टमय इतिहास के उतार-चढ़ाव की झलक मिलती है। शासकों, साहूकारों और जमींदारों ने उनका भरपूर शोषण किया। बेगारी प्रथा में पिसते पूर्वजों की पीड़ा का उल्लेख उन गीतों में मिलता है। सामाजिक व्यवस्था ने पूर्वजों के कवि हृदय को झिंझोड़ा और उन्होंने अपनी भावना को गीतों में व्यक्त किया और कलाकारों ने उसे नृत्य में प्रदर्शित किया। सबसे उल्लेखनीय बात तो यह है कि उन्होंने अपनी वेदना और पीड़ा को गीत-संगीत और नृत्य […]
रात का सन्नाटा! हाथ में ब्लेड! कमरे में अँधेरा! राधा बुत बनी कई मिनट तक खड़ी रही। कमरा जाना पहचाना होकर भी अजनबी लगने लगा। सारा गाँव सोया पड़ा था। ‘घर से भागने वाली लड़कियों को ट्रक वाले उठा के ले जाते हैं’ ऐसा उसकी माँ कहती थीं। हाथ में ब्लेड लिए-लिए उसके ज़हन में अजीब-अजीब सवाल आने लगे। न जाने माँ क्यों मर गयीं। अभी तो पचास की भी न हुईं थीं। कहती थी ‘जब तू अठरा की हो जायेगी तब तेरा ब्याह करना है। उससे पहले ईश्वर न उठाए बस।’ ईश्वर ने तो उठाया भी नहीं, वो तो इसी आंगन में पड़ी रह गयी थी जब उसे चार लोग उठा के घाट ले गए। वो भी घाट जाना चाहती थी पर किसी ने जाने न दिया। इससे तो ईश्वर ही उठा लेता, मोहल्ले वालों ने उठाया, उससे तो बेहतर होता। तीन साल पहले ही मर गयी। मुझे अठरा […]
“रधिया चल कपड़े धो।” “माँ ,मैं बहुत थक गई हूं ,दर्द भी बहुत हो रहा, सुबह से काम कर रही हूं।” “अरी तो क्या काम न करेगी? चल उठ।” “कपड़े धो कर रसोई में पड़ा साग काट देना।” रधिया , माँ के इस व्यवहार से बहुत आहत थी। उसकी क्या गलती है। खेत में बापू को खाना देने गयी,आते समय दबंगों ने पकड़ लिया। उनकी दरिंदगी का शिकार हुई। 3 दिन घायल अवस्था में अस्पताल रही। पुलिस आयी। कुछ दिन बाद दबंग तो छूट गए पर रधिया हमेशा के लिए कैद हो गयी। अब रधिया 7 माह की गर्भवती है। इतनी छोटी की 4 महीने तक तो उसे गर्भ का पता ही न चला ! माँ तो […]
चंद्रकांता संतति भाग 7 बयान 3 के लिए क्लिक करें शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी भी पैदा नहीं कर सकती। हम इस समय आपको एक ऐसे मैदान की तरफ ध्यान देने के लिए कहते हैं, जिसकी लम्बाई और चौड़ाई का अन्दाज करना कठिन है। जिधर निगाह दौड़ाइये, सन्नाटा नजर आता है। कोई पेड़ भी ऐसा नहीं है, जिसके पीछे या जिस पर चढ़कर कोई आदमी अपने को छिपा सके। हाँ, पूरब तरफ निगाह कुछ ठोकर खाती है और एक धुंधली चीज को देखकर गौर करने वाला कह सकता है कि उस तरफ शायद कोई छोटी-सी पहाड़ी या पुराने जमाने का कोई ऊंचा टीला है। ऐसे मैदान में तीन औरतें घोड़ियों पर […]
सहायक ताद्वशी जायते बुद्धिर्व्यवसायोsपि तादृश: । सहायास्तादृशाश्चैव यादृशी भवितव्यता ॥ (नीतिविवेके) थोड़ी ही देर पीछे ग्यारह बजे और जेलर साहब के साथ भाई दयालसिंहजी और बारिस्टर साहब आ पहुँचे। जेलर साहब ने मेरे कैदखाने का दरवाजा खोल दिया और वे तीनों उस कोठरी के बाहर खड़े हो गए। इन लोगों को देखकर मैं भी उठकर खड़ी हो गई थी। मुझे वैसे ढंग से सिर झुकाए हुए खड़ी देखकर भाई दयालसिंहजी ने मुझसे यों कहा,– “बेटी, दुलारी! तुम्हारी सारी बातें जेलर साहब की जबानी मुझे अभी मालूम हुई हैं। तुमने जो कुछ कहा, वह बहुत ही ठीक कहा; पर यहाँ पर मैं एक ऐसी बात तुम्हें सुनाऊँगा, जिसे सुनकर तुम्हें कुछ संतोष होगा और तब फिर तुमको इतने व्रत या नियम करने की कोई आवश्यकता न रह जायेगी।” मैंने पूछा,– ”तो वह बात कौन सी है?” वे कहने लगे,– “क्या, यह बात तुम जानती हो कि तुम्हारे दूर के नाते के […]
कुछ समय पहले टीवी पर एक इश्तहार आता था जिसमें सब झूम झूम कर कहा करते थे कि “जो तेरा है वो मेरा है जो मेरा है वो तेरा” इस थीम को ध्येय वाक्य बना लिया चीन ने और चौदह देशों से सटी अपनी सीमाओं पर यही फार्मूला अपना लिया और हर तरफ हाथ पांव मारने लगा कि कहीं कुछ भी हासिल हो जाये ,जमीन की इतनी तलब कि तिब्बत और हांगकांग से जी नहीं भरा तो अब रूस के एक शहर पर अपना दावा ठोंक दिया कि वो रूस का आधुनकि व्लादिवोस्टोक शहर ,चीन का चार सौ साल पुराना हसेनवाई शहर है ,जो उनके मन्चूरियन प्रान्त का हिस्सा था ।यही हाल रहा तो कुछ दिन में चीन हर उस जगह दावा ठोंक देगा जहां-जहां मन्चूरियन या चायनीज डिश खायी जाती है ,लेकिन रूस तो आखिर रूस ही ठहरा उसने ड्रैगन को ऐसी घुड़की दी कि अब चीन आंखे दिखाने […]
नई कोठरी नमस्यामो देवान् ननु हतविधेस्ते$पि वशगा, विधिर्वन्द्य: सो$पि प्रतिनियतकर्मैकफलदः । फलं कर्मायत्त यदि किममरै: किं च विधिना, नमस्तत्कर्मभ्यो विधिरपि न येभ्य: प्रभवति ।। (भतृहरि:) बस, इसी तरह की बातें मैं मन ही मन सोच रही और रो रही थी इतने ही में जेलर साहब ने आकर मुझसे यों कहा,– “बेटी दुलारी, मुझे ऐसा जान पड़ता है कि तुम्हारे खोटे दिन गए और भले दिन अब आया ही चाहते हैं। तुम पर जगदीश्वर की करुण दृष्टि पड़ी है और तुम्हारा दुर्भाग्य सौभाग्य से बदला चाहता है। मेरे इतना कहने का मतलब केवल यही है कि एक बड़े जबर्दस्त हाथ ने तुम्हें अपने साये तले ले लिया है, जिससे इस आफत से तुम्हारा बहुत जल्द छुटकारा हो जाये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। बात यह है कि भाई दयालसिंह बहुत पुराने और बड़े जबर्दस्त जासूस हैं और सरकार के यहाँ इनकी बातों का बड़ा आदर है। तब, जब कि यही […]
वी आर रेडी टू गो इन 100, 99, 98…. काउंटडाउन स्टार्ट हो चुका था। जिओसिंक्रोनोअस सैटेलाइट लांच वेहिकल एमकेIII-डी-2 के कॉकपिटशिप केबिन में उस वक़्त चार लोग थे। बाहर सबकी निगाहें उस रॉकेट पर लगी हुई थीं। ये पहला मौका होगा जब चाँद पर भारतीय तिरंगा लहराया जायेगा। लेकिन इसरो द्वारा चाँद पर भेजने का फैसला करने और साढ़े आठ सौ करोड़ रुपए इसपर ख़र्च करने की वजह सिर्फ झंडा लहराना तक सीमित नहीं थी। काउंटडाउन अपने एंड पर पहुँचा 03..02..01, रिलीजिंग द लोअर डॉक एंड इन्जेंस ऑन फायर… मिशन मून-डॉट की टीम हवा में उठ चुकी थी। उन चारों को तेज़ झटका लगा और उनकी पीठ अपनी-अपनी कुर्सियों पर तन गयी। 9537 किलोमीटर प्रति घंटे का थ्रस्ट जो S200 बूस्टर फर्स्ट स्टेज इंजिन्स की वजह से उन्हें लगा था। सबकी मुट्ठियाँ भिंच गयीं। रॉकेट स्पेस में पहुँचने और उसके बाद फिर थर्ड स्टेज एमकेIII के इजेक्ट होने तक पूरी […]
गांव जाने पर जो सबसे पहला चेहरा सामने आता है वो है हमारे “शिवबचन ठाकुर” का पौढ़ अवस्था की ओर अग्रसर शिबच्चन कांपते हाथ भी हमारे हर मांगलिक कार्यक्रम में इस ठसक से शामिल होते हैं कि क्या बताएं अम्मा कहीं लोकाचार भूल भी जाएं तो चट से अम्मा को टोकते हैं “ह नु! रवा हियां अइसे न अइसे होला”।बचपन से ठाकुर (पेशेगत जाति हज़्ज़ाम) के रूप में उन्हें ही जाना। ग्रेजुएशन के दिन थे,दिल्ली प्रवास में रहते।घर (भोजपुर) और भाषा भोजपुरी के भावनात्मक लगाव में कुछ पढ़ने का मन किया।एकमात्र सहारा गूगल में सर्च किया तब जाकर पहला साक्षात्कार हुआ,दूसरे ठाकुर! जिन्हें कोई भोजपुरी का शेक्सपियर कहता है तो कोई भोजपुरी का तुलसीदास,कहीं भरतमुनि के विधा के कलाकार कहे गए तो खुद महापंडित राहुल सांकृत्यायन द्वारा अनगढ़ हीरा कहाये जाने वाले “भिखारी ठाकुर” से। 18 दिसम्बर 1887 को कुतुबपुर में माता शिवकली देवी और पिता दलसिंग ठाकुर के घर […]
बचपन में क्राइम फिक्शन नॉवेल पढ़ते वक़्त ये बात मन में बार बार आती थी कि ‘इस तरह डकैती के आइडियाज़ लिखने वाले में क्या अनोखा दिमाग होगा, पर क्या इन्हें कोई सच में भी आजमा सकता है?’ फिर एक रोज़ पता चला था कि मशहूर पल्प फिक्शन नॉवेल राइटर, सर सुरेंद्र मोहन पाठक की एक नॉवेल पढ़कर कुछ डकैतों ने उसी तरह अपराध को अंजाम दिया’ हाल ही में अमेज़न प्राइम पर एक वेब सीरीज लांच हुई है, ब्रीथ (Breathe). यही वो सीरीज है, जिससे अभिषेक बच्चन OTT की दुनिया में अपना पहला कदम रख रहे हैं. Breathe – Into the shadows का इंतेज़ार न सिर्फ अभिषेक बच्चन के फैन्स(?) कर रहे थे बल्कि Breathe सीजन 1 के दर्शकों और प्रशंसकों की उत्सुकता भी सीजन 2 के लिए बनी हुई थी. Breathe के पहले सीजन में आपको याद होगा कि आर. माधवन एक ऐसे पिता के रोल में थे […]
बहुत ही बढिया अौर शिक्षाप्रद ,एवं व्यंगात्मक कहानी , 🙏🙏🙏