हिन्दी का श्रेष्ठ और कालजयी साहित्य
शेखचिल्ली इस समय वही कर रहा था, जिसमें उसमें सबसे ज्यादा मज़ा आता था- पतंगबाज़ी . वो इस समय अपने घर की छत पर खड़ा था और आसमान में लाल-हरी पतंगों के उड़ने का मजा ले रहा था. शेख की कल्पना भी उड़ान भरने लगी. वह सोचने लगा- काश मैं इतना छोटा होता कि पतंग […]
मिथक में क्राइम डिटेक्शन पिछले पांच हिस्से लिखने के बाद, आज आपको फिर से ‘बैक टू स्क्वायर’ वहीं लेकर जा रहा हूँ जहां से इस सीरीज के लेखों की शुरुआत हुई थी। नहीं, मैं आपको उससे पहले के समय में लेकर जा रहा हूँ। जब लेखन नहीं किया जाता था तब कहानियों को सुना जाता […]
एक थी बुढ़िया. उसका एक पोता था. पोता रोज़ रात में सोने से पहले दादी से कहानी सुनता. दादी रोज़ उसे तरह-तरह की कहानियाँ सुनाती. एक दिन मूसलाधार बारिश हुई. ऐसी बारिश पहले कभी नहीं हुई थी. सारा गाँव बारिश से परेशान था. बुढ़िया की झोंपड़ी में पानी जगह-जगह से टपक रहा था—- टिपटिप टिपटिप […]
अध्याय 16 : मुंशी जी की बैठक मुंशीजी बैठक में आकर एक कुर्सी पर बैठ गये। खवास सामने अलबेला रख गया था। मुंशीजी ने तमाखू पीते-पीते कहा-“बाहर जो लोग शोरगुल मचा रहे हैं उनको यहाँ बुलाओ।” दरोगा, जमादार और लट्ठ लिये कई चौकीदार बैठक में आये। उनके साथ हमलोगों का पुराना परिचित अबिलाख बिन्द भी […]
हिन्दी व्याकरण लिखने के शुरूआती प्रयास औरंगजेब के शासन काल में हुए, जब मिर्ज़ा खां ने ब्रजभाषा का संक्षिप्त परिचयात्मक इतिहास लिखा. संभवतः 1715 ई. के आसपास हॉलैंड के जोशुआ जॉन केटलर ने हिन्दुस्तानी भाषा का व्याकरण लिखा, जिसे सुनीति कुमार चाटुर्ज्या ने ‘हिन्दुस्तानी का सबसे प्राचीन व्याकरण’ कहा है. डॉक्टर जॉन गिलक्राइस्ट ने 1790 […]
सस्पेंस के लिए चार जरूरी कारक हैं – पाठकों की सहानुभूति, पाठकों की चिंता, करीब से करीबतर खतरे और बढ़ता तनाव। पाठकों की सहानुभूति हासिल करने के लिए किरदार को महत्वाकांक्षा, इच्छा, घाव, आंतरिक संघर्ष आदि भावों का गहना पहना सकते हैं, जिससे पाठक उनके साथ जुड़ाव महसूस करे। जितना अधिक पाठक और किरदार के […]