आवाज कार या टैक्सी की है। अभी यहाँ से दूर है, लेकिन इसके पहुँचने का पता पहले से चल गया है, क्योंकि पहाड़ियों की गूँज ने इस आवाज को फुटबाल की छोटी-छोटी उछालों में आगे फेंका है। कार या टैक्सी होटल की तरफ ही आई है, क्योंकि सड़क इस होटल पर आ कर खत्म हो जाती है - द डेड एंड। इस बीत गए मौसम में क्या कोई ठहरने आ रहा है? इस बार का सीजन तो बिलकुल बर्बाद रहा। गर्मियों का मौसम शुरू देर से हुआ और खत्म जल्दी हो गया। पहाड़ों के होटलों, दुकानदारों का सीजन तो सिर्फ
स्वातंत्र्योत्तर कहानी
आजादी के तुरंत बाद की हिंदी कहानी में दो धारायें प्रत्यक्ष दिखाई देती हैं- स्वातंत्र्योत्तर कहानी की ग्राम केंद्रित धारा और स्वातंत्र्योत्तर कहानी की नगर केंद्रित धारा। पहली धारा का प्रतिनिधित्व फणीश्वरनाथ रेणु और शिवप्रसाद सिंह जैसे रचनाकार कर रहे थे, तो दूसरी धारा में कमलेश्वर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, राजेन्द्र यादव, मन्नू भंडारी , निर्मल वर्मा, कृष्णा सोबती आदि नाम महत्वपूर्ण हैं। इसी दौर में हरिशंकर परसाई ने व्यंग्य लेखन के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाई। महानगरीय भाव बोध, दाम्पत्य संबंधों का तनाव आदि विषय इस दौर की कहानियों के केंद्र में रहे।