विकास खुराना ने कार की विंडस्क्रीन पर लुढ़कते मोतियों की शक्ल में एकाएक उभर आई बूंदों की तरफ देखा I देखते ही उसका मन खिन्न हो उठा I बाहर अँधेरा और घना होने लगा था और बादलों और बिजली की जुगलबन्दियों ने अपना असर भी दिखाना शुरू कर दिया था I उसने घडी के डायल की तरफ निगाह फिराई – ५.३५ I
“ लग गयी आज तो……साला मेहरा का बच्चा….आज ही……” इस से पहले वो आगे कुछ बोल पाता एक जोरों की आवाज से उसका ध्यान बंट गया I उसने सामने की तरफ निगाह दौड़ाई तो देखा जहाँ से उसे टाउन हाल की तरफ जाने वाली सड़क पर मुड़ना था उसके दहाने पर एक पीपल के पेड़ की मोटी शाख बिजली गिरने की वजह से आ पड़ी थी I बाहर बारिश ने अपना रुख तब्दील कर लिया था और अब मूसलाधार बरस रही थी I वो धीमी रफ़्तार से कार चलाता हुआ सड़क पर गिरी हुई शाख तक आया और फिर उसने देखा की शाख ने गिरने के बाद पूरी तरह रास्ते को बंद नही किया था I ये देखकर उसे थोड़ी राहत महसूस हुई उसने कार को आगे बढ़ाया और पूरी दक्षता के साथ कार को ड्राइव करता हुआ शाख के बगल में खाली पड़ी जगह से निकाल कर टाउन हॉल वाली सड़क पर दौड़ा दिया I
विकास खुराना एक २८ वर्षीय, गोरी रंगत का एक खूबसूरत सजीला नौजवान था और अपनी इन्ही कुछ ख़ास विशेषताओं और अपने अभिनय के शौक़ के चलते स्थानीय रंगमंच का एक उभरता हुआ सितारा था जिसमे इजाफे के तौर पर हाल ही में हुवे एक स्थानीय मल्टीप्लेक्स के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाये गए नामी फ़िल्म निर्देशक किशोर रल्हन द्वारा उसके शहर में अपनी आगामी नयी फ़िल्म की शूटिंग की घोषणा और बतौर सह कलाकार विकास खुराना का चयन था I तबसे विकास न केवल स्थानीय मीडिया की आँखों का तारा बन गया था बल्कि उस जैसे तमाम इस क्षेत्र में अपना कुछ मुकाम बनाने के तमन्नाई स्थानीय अभिनेता और अभिनेत्रियों का रोल मॉडल भी बनकर उभरा था I अब हालात ये थे की जब भी वो कहीं सार्वजनिक स्थान पर किन्ही जाती वजुहातों के तहत मौजूद होता तो तमाम बच्चे नौजवान और कभी कभार तो अधेड़ावस्था की ओर तेजी से अग्रसर महिलाएं उसे घेर लेती थीं जिनमे से कुछ उस से खुद को कोई छोटा मोटा रोल दिलवाने की तो कुछ अपनी ‘बहुत खूबसूरत और अभिनय के लिए ही पैदा हुई कथित जन्मजात नायिका’ सरीखी बेटी को बतौर नायिका रोल दिलवाने की सिफारिश करने की गुहार लगाने लगती थीं I ये सब तब था जबकि अभी तक किशोर रल्हन की फ़िल्म की ना ही पूरी कास्टिंग फाइनल हुई थी और ना ही शूटिंग का शेड्यूल फाइनल हुआ था और न ही उसे अपने अभिनय का कौशल बड़े परदे पर दिखाने का अवसर मिला था I ऐसे हालात से दो चार होने पर वो सीधे वहां से भागकर ‘अप्सरा’ में पनाह पाता था I अप्सरा शहर से बाहर कदरन एक सुनसान और खुली जगह पर हाल ही में नया खुला एक ‘बार कम डिस्को जायंट था और जिसकी स्टार अट्रैक्शन उसकी सहमालिक धनाढ्य विधवा रीता राजन की विदेशों में पली बढ़ी गायिकी और अभिनय के शौक़ में रची बसी एकलौती पुत्री अप्सरा राजन की सुरीली आवाज और पांच पीस के आर्केस्ट्रा बैंड के साथ उसकी जुगलबंदी से उपजी गीत संगीत की महफ़िल थी I हालांकि ऐसी महफ़िलों का सिलसिला शाम ८ बजे के बाद ही शुरू होता था मगर कभी कभी किसी खुसूसी मेहमान के आगमन पर वो ८ बजे के बाद का दायरा सिकुड़कर कभी भी हो जाता था I और विकास खुराना को वहां पर ऐसे ही खुसूसी मेहमान का दर्ज़ा हासिल था और उसके इस हासिल के पीछे की एकलौती और वाहिद वजह ये थी कि अप्सरा राजन न केवल स्थानीय रंगमंच पर विकास खुराना के साथ कई कामयाब नाटकों में अभिनय कर चुकी थी बल्कि उसे ये भी मुगालता लगा हुआ था की जब किशोर रल्हन की फ़िल्म की कास्टिंग शुरू होगी तो जरूर विकास उसे अपने साथ सह नायिका का कोई रोल दिलवा देगा और साथ ही वो विकास पर दिल भी रखती थी जबकि विकास का उसके साथ केवल प्रोफेशनल रिलेशनशिप पर ही हमेशा से जोर रहा था और उसके बार बार इसरार करते रहने के वाबजूद कभी भी विकास ने न उसके मुगालते को हवा दी थी और ना ही उसके लिए दिल में कोई नर्म सा कोना विकसित कर पाया था I
ऐसे ही एक नाटक ‘दिले नादां तुझे हुआ क्या है’ का आज स्थानीय टाउन हाल में मंचन था जिसमे न केवल विकास खुराना का केंद्रीय किरदार था बल्कि बतौर मुख्य अभिनेत्री अप्सरा राजन का भी किरदार था I उक्त नाटक का आज ९ बजे से मंचन था जिसकी सभी तैय्यारियाँ पूरी हो चुकी थीं और विकास वहीँ जा रहा था जबकि बारिश ने आकर उसके लिए कुछ बाधाएं पैदा करने की नाकाम सी कोशिश की थी I
बारिश अब पहले की अपेक्षा कुछ धीमी हो चुकी थी और फुहारों की शक्ल में अब भी बरस रही थी I विकास ने टाउन हॉल के पास पहुंचकर कार में बैठे बैठे ही जायजा लिया I बारिश होने के वाबजूद भी उसे वहां काफी चहल पहल दिखाई दी I
‘ बढ़िया ‘ उसने सिगरेट का आखिरी कश लगाया और खिड़की से बाहर फ़ेंककर अपनी “आई २०’ को पार्किंग की तरफ मोड़ दिया I कार पार्क करके वो पार्किंग के बाजू से होकर जाने वाले द्वार से तेज क़दमों से हाल की तरफ बढ़ा जहाँ पहुचते ही उसे शहर के सम्मानित और गणमान्य लोगों के बीचों बीच किसी बात पर खुल कर ठहाका लगाकर हंसती चेतना चहल के दर्शन हुवे जिसे देखकर विकास को हैरानी उसके पहनावे पर हुई जिसने अपने चिर परिचित पाश्चात्य परिधानों की जगह हलके पिंक कलर का फ्रॉक सूट पहन रखा था और मैचिंग आर्टिफीसियल ज्वेलरीज पहन रखी थीं ! चेतना ने उसे देखते ही अपना चिर परिचित फिकरा उसकी तरफ उछाला –“ हाय हीरो आज तो गजब ढा रहे हो “ और उसकी तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया जिसे विकास ने झिझकते हुवे थाम कर छोड़ दिया I चेतना हमेशा उसकी चेतना को हर लेती थी I चेतना शहर के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉक्टर मंजीत चहल की एकलौती सुपुत्री थी जो पिछले साल ही ड्रेक्सेल यूनिवर्सिटी फिलाडेल्फिया, अमेरिका से क्रिमिनालिस्टिक साइंस में एम० एस० करके आई थी और आते ही तेजी से शहर के न केवल बुद्धिजीवी वर्ग बल्कि शहर के लॉ एंड आर्डर के उच्चाधिकारियों तक में अपनी सूझबूझ और अपनी तीखी निरीक्षण शक्ति के बूते छा गयी थी I विकास के अभिनय की वो बड़ी प्रशंसक थी और उसके किसी भी नाटक के मंचन में उसकी मौजूदगी इस तरह से ही होती थी जैसा की वो खुद उस नाटक का एक अहम् किरदार हो जिसका बतौर परफ़ॉर्मर सिर्फ इतना रोले दरकार था की वो दर्शक दीर्घा में बैठकर नाटक का आनंद ले I
विकास ने चेतना और मौजूद सभी लोगों की शुभकामनाओं का जवाब मुस्कराहट से देते हुवे विदा ली और मंचन हाल में कदम रखा और एक ओर बने कैफ़ेटरिया की घडी पर निगाह दौड़ाई वहां ७.५० हो रहे थे उसने इधर उधर निगाह फिराई और स्टेज को देखते हुवे और कुछ सोचकर इस हाल के मुख्यद्वार की ओर बढ़ गया I
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टाउन हाल की ये इमारत काफी पुरानी थी और अंग्रेजों के ज़माने से ही अपनी उसी हालत में थी और उसमे किसी भी नयी तामीर का कोई इजाफा न हुआ था I वो एक खूबसूरत ईमारत थी जिसमे आये दिन तरह तरह के मंचन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और संगीत के प्रोग्राम हुआ करते थे मगर जादातर गतिविधियाँ रंगमंच की ही होती थीं और जिसमे स्थानीय सामाजिक स्तंभों और बुद्धिजीवियों की शिरकत बढ़ जाती थी I इसकी देखरेख का जिम्मा स्थानीय टाउन हॉल कमेटी के पास था जिसका जोर सिर्फ उसकी वाह्य और आंतरिक साज सज्जा में बदलाव के अलावा उसकी संरचना को अपने मूल स्वरुप में ही बरकरार रखने पर था I ये इमारत दो हिस्सों में थी जो अलग अलग हाल नुमा दो बड़े कमरों की शक्ल में थी I दूसरा हाल कदरन बहुत लम्बा चौड़ा था और उसका उपयोग मंचन हेतु किया जाता था और दूसरा बाहरवाला हाल सिर्फ गैदरिंग और वेटिंग लाउन्ज के तौर पर उपयोग होता था जहाँ अलग अलग कोने में खाने पीने की चीज़ों के स्टाल थे I दोनों ही हाल में आने जाने के लिए अपने अपने रास्ते थे I बाहरवाले हाल में आने का एक रास्ता पार्किंग एरिया के बाजू से होकर था और मुख्यद्वार सामने मुख्य फाटक से अन्दर आकर सड़क की ओर ही था I मंचन वाले हाल में भी मुख्यद्वार सामने सड़क की ओर से था मगर उसका उपयोग कम किया जाता था और कार्यक्रम की शुरुवात होते ही पहले हाल में मौजूद सभी लोग उस द्वार से होकर अन्दर आते थे जो पहले हाल में पार्किंग की तरफ से आने वाले द्वार के बिलकुल सामने विपरीत दिशा में बना हुआ था I
उस वक़्त ८.३० बज रहे थे जब चेतना चहल ने मंच वाले हाल में कुछ चीख सी सुनी I उस वक़्त वो काफी के स्टाल पर थी जो उस दरवाजे के दायें तरफ उसी दीवार से लगकर था जिस दीवार में मंच वाले हाल में जाने का द्वार बना था I वो कुछ अनमनी सी होकर फिर से अपना ध्यान उस ओर केन्द्रित करने की कोशिश कर ही रही थी की वो द्वार एक दम से खुला और एक तकरीबन ४५ के पेटे में पंहुचा हुआ व्यक्ति ‘खून….खून..’ चीखता हुआ बदहवास सा बाहर वाले हाल में आया I सभी लोग एक दम जड़ से हो गए I एकबारगी किसी को समझ में ना आया फिर चेतना ने पहल की और उस व्यक्ति को कंधे से पकड़ कर झिंझोड़ा –“क्या हो गया ? किसका खून ? कैसा खून “
कंधे पर पड़ते दबाव से वो व्यक्ति कुछ होशमंद हुआ और आतंकित सी मुद्रा में बोला – “ वो …विकास ..साहब…को किसी ने मार दिया “
चेतना को एकबारगी यक़ीन ना हुआ उसने दोबारा घुड़ककर अपना सवाल दोहराया और वही जवाब सुनकर एक बारगी थोडा संजीदा हुई I तब तक इस हाल के लोगों में सुगबुगाहट शुरू हो चुकी थी और कुछ लोग मंच वाले हाल की तरफ जाने वाले थे की चेतना ने उन सबको रोक दिया और पुलिस को काल कर दी I
टाउन हाल पुलिस स्टेशन करीब में ही था नतीजतन चेतना की कॉल पर फौरी कार्यवाई के तहत जो अमला वहां पहुंचा उसमे इंस्पेक्टर अभय नौटियाल चेतना को पहले से जानता था और अपने उच्चाधिकारियो के बीच चेतना की इमेज से भी वाकिफ था I लिहाज़ा उसने दोस्ताना रवैय्या अख्तियार किया और वहां मौजूद सभी लोगों को वहीं ठहरने की ताकीद करके मंच वाले हाल में कदम रखा और दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया I साथ में आये दो हवलदारों को पहले ही उसने किसी को भी वहां से हिलने न देने की ताकीद करके बहार वाले हाल में छोड़ दिया था I
चेतना उस हाल के भूगोल से पहले ही वाकिफ थी I ये हाल एक लम्बा चौड़ा लगभग आयताकार कमरा था जिसके एक ओर मंच और विपरीत दिशा में काफेटेरिया था I स्टेज के दोनों तरफ गलियारे से बने हुवे थे जो स्टेज के पीछे कलाकारों के लिए बने रेस्टरूम्स और रिहर्सल तथा प्रॉप्स रूम तक ले जाते थे I
“ कहाँ है लाश ? “ इंस्पेक्टर ने लाश की खबर बाहर देने वाले व्यक्ति से पूछा I
“ जी उधर रिहर्सल रूम में “ उसने स्टेज के पीछे की तरफ इशारा करते हुवे बताया I
तीनो लोग स्टेज के पीछे बने रिहर्सल रूम तक पहुंचे जहाँ एक कमरे में ३ व्यक्ति – २ पुरुष और एक महिला बदहवास हाल में सर जोड़े बैठे थे I चेतना ने देखा की उनमे से एक पुरुष ग्रे कलर के सूट में सजा धजा सा बैठा था जिसने पूछने पर बताया की वो आज के नाटक का निर्देशक अमर नायक था I दूसरा व्यक्ति जो लगभग ३० के आसपास था और जिसने बड़े करीने से अपने बाल संवार रखे थे और black जीन्स और वाइट शर्ट में लकदक था वो कला निर्देशक इकबाल सिद्दीकी था I इसके अतिरिक्त वहां पर मौजूद एकलौती स्त्री को चेतना अच्छी तरह पहचानती थी –वो अप्सरा राजन थी I विकास के साथ कई नाटकों में वो नायिका का किरदार निभा चुकी थी और आज के नाटक की भी नायिका वही थी I वो उस वक़्त बहुत ग़मगीन सी लग रही थी और निरंतर रोते रहने की वजह से उसकी आँखें लाल हो रही थीं I उस वक़्त उसने गुलाबी, बैंगनी रंग का स्कार्फ गले में डाला हुआ था, उसके बाल सुनहरी रंगत लिए हुवे थे और उस वक़्त उसने उन्हें खुला छोड़ा हुआ था I उसने सफ़ेद रंग का एक ऐसा बहुत ही चुस्त सा सूट पहन रखा था जिसमें से चेतना ने उसकी काली रंग की ब्रा साफ़ साफ़ नुमायाँ होती देखी I उस वक़्त वो बला की खूबसूरत लग रही थी I तीसरा व्यक्ति जिसने लाश बरामद की थी और सबको खबर की थी उसका नाम बाले राव था और वो मंचन के दौरान काम आने वाले सारे साजो सामान जिन्हें ‘प्रॉप्स’ कहते हैं उसके रखरखाव का कार्य देखता था I
लाश बगल वाले रिहर्सल रूम में थी –कमरे में फर्नीचर के नाम पर एक एकलौती आइटम एक छोटा सा दीवान कम सोफा था जो बैठने और लेटने के काम आता था I लाश औंधे मुह सोफे पर और निचला हिस्सा फर्श पर घुटने मुड़े होने की स्थिति में थी I खोपड़ी का पिछला हिस्सा खुला हुआ था और वैसी ही स्थिति में दूर से देखा जा सकता था की किसी भारी चीज़ से उस पर वार किया गया था जिससे खोपड़ी खील खील हो गयी थी और वार होते ही जिस्म फ़ौरन आगे की तरफ ग़ैरमामूली तरह से सोफे की तरफ गिर गया था जिसकी वजह से जादातर खून सोफे पर ही बिखरा था I पास ही फर्श पर एक तरफ एक भारी डेकोरेटिव फूलदान लुढ़का पड़ा था और एक ओर कुछ कागज़ात बिखरे पड़े थे जो एक नजर में ही दिखाई पड़ रहा था की वो आज के नाटक की स्क्रिप्ट थी और जिसे वो शो स्टार्ट होने से पहले बतौर रिहर्सल स्टडी कर रहा था I वार होते समय वो स्क्रिप्ट हाथों में थी I
“ जब तक फॉरेंसिक, फिंगरप्रिंट्स और डॉक्टर नहीं आ जाते तब तक यहाँ इस हाल में मौजूद लोगों के क्यूँ न बयान ले लिए जाएँ “ चेतना ने सुझाया
इंस्पेक्टर ने सहमती में सर हिलाया क्यूंकि आते वक़्त वो सम्बंधित विभागों को पहले ही इत्तेला कर आया था और उनके पहुचने में अभी वक़्त था I उसने बगैर किसी विशेष व्यक्ति से मुखातिब हुवे पुछा –“ सबसे पहले लाश किसने बरामद की ? “
“ साहब मैंने “ बालेराव बोला
“ शुरू से बताओ क्या हुआ था ?” कहते हुवे इंस्पेक्टर ने नोटबुक और पेन संभल लिया I
“ कितने बजे के करीब तुमने लाश को देखा “
“ ८.३० बजे के करीब ”
“ लाश इसी हालत में थी ? “
“ जी हाँ “
“ फिर तुमने क्या किया “
“ मैंने चिल्लाकर इन सबको बताया और फिर फ़ौरन ही बाहर हाल की तरफ चिल्लाते हुवे भाग गया “
“ पहले इन सबका बयान लो कौन किस वक़्त कहाँ था और क्या कर रहा था “ चेतना ने कुछ सोचते हुवे कहा I
इंस्पेक्टर ने एक बारगी चौंक कर चेतना को देखा फिर कुछ सोचते हुवे अमर नायक से मुखातिब हुआ –“ आप बताइए “
अमर ने पेशानी पर उभर आयीं पसीने की बूंदों को हथेलियों से साफ़ करते हुवे बताया –“ मैं यहाँ आने से पहले अपनी बेटी आस्था से मिलने उसके घर गया था I यहाँ आते आते ८.०० बज गए थे I यहाँ पहुँचते ही मुझे याद आया की मैं नाटक की संपूर्ण स्क्रिप्ट बेटी के घर ही भूल गया हूँ तो मैंने ८.०५ पर उसे कॉल लगायी और बाहर ही सिगरेट फूंकता इंतज़ार करता रहा I ८.२० पर मुझे स्क्रिप्ट मिली I फिर सब लोग एक साथ अन्दर आये क्यूंकि जब मैं बाहर था तो अप्सरा जी बाहर ही मिली थीं I “ इतना कहकर वो रुका और आगे कुछ पूछे जाने का इंतज़ार करने लगा I इंस्पेक्टर ने बयान नोट किया और अमर से कुछ और पूछे बगैर अप्सरा से मुखातिब हुआ – “ आप ?”
“ मैं तकरीबन ७.५० पर ही यहाँ पहुंच गयी थी मगर मुझे बाहर ही ठहरना पड़ा क्यूंकि अमर और विकास के पास ही अन्दर की चाभियाँ थीं I तभी भीतर से विकास बाहर आया, मुझे पता न था की वो बगल वाले हाल से होकर इस हाल में आया था I हमलोग बाहर ही थे की ८.०० बजे के करीब इकबाल और अमर भी आ गए लेकिन अमर को बाहर ही ठहरना था इसलिए मैंने विकास, अमर और इकबाल के साथ ८.०५ पर काफी शेयर की I फिर मैं अन्दर वाशरूम गयी और अपना मेकअप दुरुस्त किया और ८.२५ पर बाहर आई I ”
इंस्पेक्टर ने ये बयान भी नोट कर लिया और इकबाल से मुखातिब हुआ –“ अब आप भी बता दीजिये ”
“ इकबाल ने हाथ में थमें रुमाल से चेहरे और गर्दन का पसीना पोंछते हुवे अटक अटक कर बताया –“ मैं ७.५७ के आसपास यहाँ पहुंचा तो देखा की अमर, विकास और अप्सरा काफी पी रहे हैं I मैंने भी अपने लिए काफी बनायीं और साथ ही पीने लगा I तकरीबन ८.०८ पर मैंने अप्सरा को वाशरूम जाते देखा थोड़ी ही देर में विकास ये कहते हुवे चला गया की वो जाकर आज के नाटक के लिए जरूरी प्रॉप्स को देख ले क्यूंकि बाले राव अभी तक नहीं आया है न उसका मोबाइल लग रहा है I मैंने ८.१५ पर अमर के साथ सिगरेट पी और उसकी स्क्रिप्ट आते ही हम दोनों अन्दर आ गये I मैं जब वाशरूम की ओर जा रहा था तभी बालेराव खून खून चीखता दौड़ता आया और बाहरवाले हाल की तरफ दौड़ गया I “
इंस्पेक्टर ने ये बयान भी नोट कर लिया और गौर से देखते हुवे अंत में बालेराव की ओर देखा उसने घबराकर बोलना शुरू किया –“ साहब मैं बाहरवाले हाल से होकर सीधा अन्दर आया था, आज मुझे पहुचने में देर हो गयी थी और मोबाइल भी बंद था क्यूंकि चार्ज करना भूल गया था I विकास साहब और अमर साहब के डर से मैं सीधे आज के नाटक के लिए जरूरी प्रॉप्स सेट करने सीधे प्रॉप्स रूम की तरफ बढ़ रहा था की रिहर्सल रूम के खुले दरवाजे से अन्दर नजर पड़ी और विकास साहब को खून से लथपथ मारा पाया उनकी खोपड़ी खुली थी I साफ़ लग रहा था वो मर चुके थे I “ इतना कहकर वो धम्म से फर्श पर बैठ गया I
सारे बयान हो चुके थे I इंस्पेक्टर अभय ने इक बार फिर से सारे बयानों को गौर से पढ़ा फिर सर हिलाते हुवे चेतना से बोला –“ मैडम मुझे नहीं लगता की इनमे से कोई कातिल है ..अब लग रहा है की लाश को पोस्टमोर्टेम को भिजवाने के बाद बाहर वालों के बयान भी लेने होंगे “
चेतना ने कोई जवाब नहीं दिया और उसके हाथों से नोटबुक ले ली जिस पर सबके बयान दर्ज थे और गौर से पढ़ने लगी I अचानक उसकी आँखें चमक उठीं और एकाएक वो बोली – “ इंस्पेक्टर उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी ….विकास खुराना का कातिल ये रहा “
To be continued……
नोट – प्रतियोगियों एवं पाठकों, अब आपको यह बताना है की क़त्ल किसने किया? अगर आप उस अपराधी को खोज निकालते हैं तो उसी के आधार पर आप इन्हीं किरदारों के साथ ऊपर लिखी कहानी को आगे बढ़ाइए जिसमे इस बात का जिक्र हो की क़त्ल कब, कैसे और क्यों किया। इस भाग में आप जिन तथ्यों, सुरागों एवं सूत्रों का प्रयोग करके अपराधी को खोज निकाला है उन्हीं के द्वारा आगे की “कहानी” प्रस्तुत कीजिये जिसे हम फाइनल चैप्टर कहते हैं। आपको अपने हिस्से की कहानी को अधिक से अधिक 1000 शब्दों में कहना है। प्रतियोगी इस बात का ध्यान रखें की आप किसी नए किरदार, घटना, सूत्र, सुराग एवं तथ्य को फाइनल चैप्टर में नहीं इस्तेमाल करेंगे सिर्फ ऊपर दिए गए कहानी में मिले सूत्रों, सुरागों और तथ्यों के द्वारा ही “फाइनल चैप्टर” में अपनी कहानी कहनी है।